मुझे अपनी कुछ 16/17 वर्ष की उम्र याद आती है, मेरी मम्मी हमेशा कहती रहती थीं कि बेटा तुमको कुछ बनाना नहीं आता। क्या होगा तुम्हारा? कई बार मैं उनके कहे पर 2-4 मिनट सोचती और कई बार तो बिन सोचे समझें, उनकी बात को अनसुना कर देती थी। लेकिन एक बार मैंने अपने पिता को खाना बनाते देखा, उनका खाना बनाने का तरीक़ा मुझे थोड़ा अटपटा लगा। क्योंकि, वो खाने में अपने हिसाब से कुछ-कुछ मिलाते जा रहे थे। जो मम्मी के खाना बनाने से बिल्कुल अलग था। फिर जब खाना मुझे परोसा गया तो वो बहुत स्वादिष्ट था।
मेरी खाने की खोज, उस खोज की यात्रा उस दिन से ही शुरू हो गयी थी। अब मैं किसी को भी खाना बनाते देखती तो मुझे उसमें क्या अलग है? ये जानने की उत्सुकता बनी रहती थी। मैंने स्ट्रीट फ़ूड, रेस्टोरेंट, होटेल्स कई जगह जाकर खाने को जानने की कोशिश की है। इस दौरान मैंने हर शहर या यूँ कहें हर क़स्बे में कुछ नया मिला। हर खाने में एक अलग स्वाद को मैंने महसूस किया।
मैं इस यात्रा में आप सबको ले चलना चाहती हूँ। आपको मेरी खोज के माध्यम से खाने की नयी दुनिया से रूबरू करवाउंगी। खाना महज पेट नहीं भरता बल्कि ये कितनी संस्कृतियों को अपने भीतर समाहित किए हुए है।